कहते है कि जब आप पूरी शिद्दत से किसी मुकाम को पाने की तान लेते है तो पूरी कायनात आपके सपने को पूरा करने में आपका साथ देती है और यह भी सच है कि आपकी तगड़ी से तगड़ी वाली परीक्षा भी लेती है और यह परीक्षा इसलिए लेती है कि आपको परखा सके कि क्या जो सपना आपने सोचा है उसके प्रति आपकी निश्छ, लय, प्रतिबद्धता उतनी ही है या नहीं और ऐसा ही कुछ हुआ है अवि गर्ग से डॉक्टर अवि गर्ग बनने की इस पूरी कहानी में। हम बात कर रहे है सूरतगढ़ के उस लाल की जिसका जन्म संघर्षों से लड़ रहीं और अपने ही समाज का डटकर मुकाबला कर रही मधुबाला गर्ग की कोख से 24 नवम्बर 1981 को हुआ और यह दिन इतिहास के स्वर्णिम पत्रों में स्वगांधरों में दर्ज हो गया कि संघर्ष की राह पर चल रही एक ममतामयी माँ ने अपनी कोख से एक वीर पुत्र को जन्म दिया है जो से कि अगर माहाभारत के काल में जन्म लेता तो अकेला ही सारे चक्रव्यूह ीद कर महाभारत फतेह कर लेता और अगर यही पुत्र सिकन्दर के समय पैदा हुआ होता तो सिकन्दर को पटखनी दे देता क्योंकि माँ के लाइले अवि को प्रारम्भ से ही पग-पग पर संचयों की राह देखनी पड़ी सफलता की और उता उसका एक-एक कदम रोकने की भरपूर कोशिश हुई लेकिन ममतामयी माँ के संगर्ष और आंसुओं में छुपी हिम्मत ने मां के प्रत्येक आंसू को हीरा समझकर उसे जाया नहीं जाने दिया। मां अपने बच्चे के लिए समाज और दुनिया से संघर्ष करती रही और इसी संघर्ष की भट्टी में तपकर बचपन का अवि वर्तमान का डॉक्टर अवि गर्ग बनकर ऐसा निखरा की सूरज की चमक तक उसके हौसले के आगे फीकी पड़ गई। लोग अवि को दवाने की ओछी हरकत करते रहे और इन सबके बीच अलि ने वह कर दिखाया जिसकी उससे उसकी माँ को उमीद थी। वो कहते हैं न कि मेहनत इतनी खामोशी से करो कि कामयायी शोर मचा दे और बस अवि गर्ग के मामले में ऐसा ही हुआ और अवि गर्ग पूरे राज्य में टॉप टेन की लिस्ट में छठे नम्बर पर रहकर एसडीएम बना लेकिन अवि के एसडीएम चॉक्टर अनि गर्ग बनने की कहानी रोंगटे खड़े कर देने वाली है। जिस बचपन में बच्चे मुड़े-गुडी का खेल खेलते है रेत के महल बनाते है उस उम्र में ही अधि के संघर्ष की कहानी शुरू हो गई और अवि भी यह बात अपने बचपन में ही भली भांति सम्यक्ष गया जो बात देश के हीमैन मांझी को सबकुछ खेकर समझ में आई। अषि ने संघर्ष के सानदार, जिंदाबाद, जबरजस्त को अपने जीवन का सबक बना लिया और उसका यह प्रण और माँ का उसके और उसकी बहन प्रीति के लिए किया जा यहा संघर्ष उसके लिए जीवंत प्रेरणा बन्स और अपनी फड़ाई के शुरुआत में ही अवि ने हर आभाव को प्रभाव में बदल दिया। वेगह दास्तान प्रत्येक उस युवा के लिए प्रेरणा अधि की ही नहीं एक जज्या है जो अभावों का गरीबी का, अपसरों का रोना रोता है। अधि के लिए प्रत्येक दिन ही नहीं अपितु प्रत्येक पल संघों से भरा था। उसे पता था कि उसके सर पर छत नहीं है, बदन पर नया कपड़ा नहीं है, पांव में नए जूते नहीं है लेकिन उसके पास इन सबसे बढ़कर था तो माँ का ममतामयी संघर्ष, प्रेरणा और छोटी बहन का साथ। मां दुनिया से संघर्ष करती रही और अवि प्रत्येक अभाव से। बस फिर क्या था संघर्ष हारता गया मां मधुबाला और बहन प्रीति का सेह जीतता गया। जितनी मुश्किल बड़ी अवि उतना ही मजबूत बना और माँ के संपों को जितता गया। संघर्ष से लिखी तकदीर कुछ और ही चाहती थी 1998 में सरस्वती सीनियर सेकेंडरी स्कूल से 12वीं में स्कूल टॉप किया। फिर 2001 में राजकीय महाविद्यालय से खातक की उसमें कॉलेज टॉप किया और राजनीति विज्ञान से 2003 में बातकोचर की जिसमें यूनिवर्सिटी टॉपर रहा। नेट, जेआरएफ का तो पता ही नहीं की कितनी बार किया। तमाम संपों और विपरीत परिस्थितियों के बाद भारतीय वायुसेना में 2001 में चयन हुआ लेकिन नियति को अवि का यहीं रुकना मंजूर नहीं था। 2006 में सीआईडी में एएसआई व 2006 में ही स्कूल व्याख्याता राजनीति विज्ञान में एक साथ चयन हुआ और अवि ने स्कूल व्याख्याता पद चुन्ना क्योंकि अधि के ॉक्टर अवि गर्ग बनने की कहानी यहीं से शुरू होती है। इसके बाद अति ने परिवार को संभाला, चूड़ी के मां के सपनों को भी अब पंख लगे और बहन को भी फाक महसूस हुज्य और वह भी बड़ी अधिकारी बन गई। समय और हालातों की तपन से मजबूत हुए अवि ने यहीं पर अपने प्रयास नही रोके और 2015 में वह दिन आ गया जब मधुबाला का सपना हकीकत बन गया और अधि गर्ग डॉक्टर अवि गर्ग बनकर राजस्थान की सबसे बड़ी प्रशासनिक सेवा में डारेक्ट एसडीएम चयनित हुआ वह भी टॉप टेन में छठी रेंक के साथ। इसके बाद पहली पोस्टिंग 27 मई 2016 की बीकानेर में उपखण्ड अधिकारी के रूप में हुई। 2017 में पीलीबंगा में उपखण्ड अधिकारी, उसके बाद 2018 में राबतसर उपखण्ड अधिकारी, 2019 में वापस पीलीबंगा उपखण्ड अधिकारी, 2019 में भादरा उपखण्ड अधिकारी, 2019 में चुरू उपखण्ड अधिकारी, 2020 में संगरिया ताखण्ड अधिकारी, 2020 में माडा में हनुमानगढ़ में अतिरिक्त मुख्य अधिकारी, 2021 में हनुमानगढ़ उपखण्ड अधिकारी, 2023 में डीडीआर बीकानेर और 2024 में बीकानेर जिला परिषद में अतिरिक्त मुख्य कार्यकारी अधिकारी के पद पर नियुक्ति हुई। चर्तमान में डीआईजी स्टाम्प हनुमानगढ़ व श्रीगंगानगर के पद पर नियुक्त है। अवि गर्ग से डॉक्टर अषि गर्ग अनने की कहानी में वह जोत है जो हारे हुए को भी जीता दे बस जरूरत है बुलंद हौसले और खुद पर मजबूत विश्वास की, डॉक्टर अवि गर्ग, उनकी माता मधुबाला और बहन प्रीति गर्ग का जीवन संघर्ष से भरा है और आज इतने बड़े पद पर आने के बाद भी अषि गर्ग हमेशा सकारत्मकता और सौम्य स्वभाव के साथ घमंड से कोसों दूर है डॉक्टर अवि गर्ग का यह व्यवहार और उनका सौम्य स्वभाष उनके लिए सबक है जो थोड़ा सा कामयाब होने पर ही नाक फुला लेते है। घमंड और अकड़ लंबे नहीं चलते हम डॉक्टर अवि गर्ग के जीवन से प्रेरणा लेकर हजारों युवाओं को प्रेरित कर उनके जीवन में आता और विचास की एक नई किरण जगा सकते है।