- मुस्कुराइए कि आप हनुमानगढ़ में हैं…
खाकी वालों के एक ठिकाने के ठिकानेदार पर बहुत ज्यादा प्रेशर था। प्रेशर यह था कि ठिकानेदार के इलाके में कोई शहर के होटल में अनैतिक कार्य व दारू पाणी ना बेचे। बस स्टैंड के पास सुंदर सा होटल था। अब आजकल होटल और रेस्टोरेंट दो ही कारणों से ज्यादा चलते हैं, एक तो दारू पीने वालों के कारण और दूसरा अवैध प्रेमी जोड़ों को एकांत उपलब्ध कराने के कारण। अपन यहां पहले वाले कारण से जुड़े मुद्दे पर बात कर रहे हैं। खैर, हुआ यह कि बस स्टैंड के पास वाला होटल जब ज्यादा चला नही तो संचालक ने वहां आने वाले प्रेमी जोड़ों को एकांत कमरा उपलब्ध मुहैया कराने की व्यवस्था भी शुरू कर दी। इससे होटल चल पड़ा। अच्छी कमाई होने लगी। अब जहां अवैध काम की बदौलत कोई दौलत कूटे और वहां ठिकानेदार साहब नहीं पहुंचे, ऐसा हो ही नहीं सकता। जो अच्छे किस्म के ठिकानेदार होते हैं, वो अवैध धंधा बंद करवा देते हैं। और जो बहुत ज्यादा अच्छे ठिकानेदार होते हैं, वो धंधेबाज के शुभ लाभ में अपना शुद्ध मुनाफा लेकर अघोषित रूप से अवैध धंधे को वैध बना देते हैं। अपने वाले ठिकानेदार बहुत ज्यादा अच्छे थे।
लिहाजा लगातार शहर के बस स्टैंड के पास वाले
होटल पर धावा बोलना शुरू कर
दिया। कभी खुद तो कभी साहब के आदमी। साहब मौके पर जाकर फटकार लगाते कि यह अवैध धंधा नहीं चलने दिया जाएगा। साहब होटल संचालक को बिठाकर पुलिस की गाड़ी में ले जाते हैं कहते हैं की बहुत पोलिटिकल प्रेशर है इसे बंद कराने का। या तो प्रेमी जोड़ों को एकांत देना छोड़ दो या फिर होटल बंद कर दो। होटल मालिक ने नेताओं के यहां सिफारिश लगाई। मगर अज्ञात कारणों के चलते कुछ नहीं बना। अतः परेशान होटल वाले ने अपने एक जानकार को मामला बताया। जानकार की ठिकानेदार से भी ठीक गुड थी। अतः मामला एक तय मासिक किस्त भुगतान पर निपट गया। जब से ठिकानेदार के पास मासिक किस्त पहुंचने लगी है, तब से उनके ऊपर से पोलिटिकल प्रेशर भी हट गया है और बस स्टैंड के पास वाले होटल में प्रेमी जोड़ों का आना-जाना बरकरार रहा
ताऊ धंटाल।